समितियां
विधान मण्डलों के बहुआयामी कार्य एवं सरकार के कार्य–कलापों की जटिलताओं को दृष्टिगत रखते हुए राज्य विधान मण्डल के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह सदन के अन्दर विधायन एवं अन्य महत्वपूर्ण कार्यों का सूक्ष्म परीक्षण कर सकें। राज्य की संचित निधि से धनराशि आहरित किये जाने की अपनी स्वीकृति के अन्तर्गत किये गये व्यय पर प्रभावी नियन्त्रण की आवश्यकता होती है। संविधान के अनुच्छेद 174(2) के अधीन विधान मण्डल के प्रति मंत्रि–परिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व और कार्यपालिका के कृत्यों पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए संविधान के अनुच्छेद–208 के अन्तर्गत बनायी गई उत्तर प्रदेश विधान सभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली, 1958 के विभिन्न स्थाई प्रकृति की वित्तीय एवं गैर वित्तीय समितियों का गठन किया जाता है।
वित्तीय समितियों में लोक लेखा समिति, सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम संयुक्त समिति, प्रदेश के स्थानीय निकायों के लेखा परीक्षा प्रतिवेदनों की जांच सम्बन्धी समिति तथा प्राक्कलन समिति मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त उक्त नियमावली के अन्तर्गत आवश्यकतानुसार तदर्थ समितियों का भी गठन किये जाने का प्रावधान है। वास्तव में संसदीय समितियां सदन की आंख और कान का कार्य करती हैं और उन्ही के माध्यम से सदन सत्र में न रहते हुये भी निरन्तर कार्य करता रहता है प्रक्रिया नियमावली में जिन समितियों के गठन का प्रावधान है उनका तथा उनके कृत्यों आदि का विवरण आगे अंकित है।
समितियों की प्रक्रिय(क) सामान्य
२००- सदन की समितियों की नियुक्ति
(१) प्रत्येक साधारण निर्वाचन के उपरान्त प्रथम सत्र के प्रारम्भ होने पर और तदुपरान्त प्रत्येक वित्तीय वर्ष के पूर्व या समय-समय पर जब कभी अन्यथा अवसर उत्पन्न हो, विभिन्न समितियां विशिष्ट या सामान्य प्रयोजनों के लिये सदन द्वारा निर्वाचित या निर्मित की जायेंगी या अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित होंगी:
परन्तु कोई सदस्य किसी समिति में तब तक नियुक्त नहीं किये जायेंगे जब तक कि वे उस समिति में कार्य करने के लिये सहमत न हों।
(२) समिति में आकस्मिक रिक्तिताओं की पूर्ति, यथास्थिति, सदन द्वारा निर्वाचन या नियुक्ति अथवा अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशन करके की जायेगी और जो सदस्य ऐसी रिक्तिताओं की पूर्ति के लिये निर्वाचित, नियुक्त और नाम-निर्देशित हों उस कालावधि के असमाप्त भाग तक पद धारण करेंगे जिसके लिये वह सदस्य जिसके स्थान पर वे निर्वाचित, नियुक्त अथवा नाम-निर्देशित किये गये हैं, पद धारण करते
परन्तु समिति की कार्यवाही इस आधार पर न अनियमित होगी और न रूकेगी कि आकस्मिक रिक्तिताओं की पूर्ति नहीं की गयी है।
२००-क-समिति की सदस्यता पर आपत्ति
जब किसी सदस्य के किसी समिति में सम्मिलित किये जाने पर, इस आधार पर आपत्ति की जाय कि उस सदस्य का ऐसे घनिष्ट प्रकार का वैयक्तिक, आर्थिक या प्रत्यक्ष हित है कि उससे समिति विचारणीय विषयों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, तो प्रक्रिया निम्नलिखित होगी:-
(क) जिस सदस्य ने आपत्ति की हो वह अपनी आपत्ति का आधार तथा समिति के सामने आने वाले विषयों में प्रस्थापित सदस्य के आरोपित हित के स्वरूप का, चाहे वह वैयक्तिक, आर्थिक या प्रत्यक्ष हो, सुतथ्यतया कथन करेगा,
(ख) आपत्ति का कथन किये जाने के बाद, अध्यक्ष समिति के लिये प्रस्थापित सदस्य को जिसके विरूद्व आपत्ति की गयी हो, स्थिति बताने के लिये अवसर देगा,
(ग) यदि तथ्यों के सम्बन्ध में विवाद हो तो अध्यक्ष आपत्ति करने वाले सदस्य तथा उस सदस्य से जिसकी समिति में नियुक्ति के विरूद्व आपत्ति की गयी हो, अपने-अपने मामले को समर्थन में लिखित या अन्य साक्ष्य पेश करने के लिये कह सकेगा,
(घ) जब अध्यक्ष ने अपने समक्ष इस तरह दिये गये साक्ष्य पर विचार कर लिया हो, तो उसके बाद वह अपना विनिश्चिय देगा जो अन्तिम होगा,
(ङ) जब तक अध्यक्ष ने अपना विनिश्चय न दिया हो, वह सदस्य जिसकी समिति में नियुक्ति के विरूद्व आपत्ति की गयी हो समिति का सदस्य बना रहेगा, यदि वह निर्वाचित या नाम-निर्देशित हो गया हो, और चर्चा में भाग लेगा किन्तु उसे मत देने का हक नहीं होगा, और
(च) यदि अध्यक्ष यह विनिश्चय करें कि जिस सदस्य की नियुक्ति के विरूद्व आपत्ति की गयी है उसका समिति के समक्ष विचाराधीन विषय में कोई वैयक्तिक, आर्थिक या प्रत्यक्ष हित है, तो उसकी समिति की सदस्यता तुरन्त समाप्त हो जायगी:
परन्तु समिति की जिन बैठकों में ऐसा सदस्य उपस्थित था उनकी कार्यवाही अध्यक्ष के विनिश्चय द्वारा किसी तरह प्रभावित नहीं होगी ।
व्याख्या- इस नियम के प्रयोजनों के लिये सदस्य का हित प्रत्यक्ष, वैयक्तिक या आर्थिक होना चाहिए और वह हित जन साधारण या उसके किसी वर्ग या भाग के साथ सम्मिलित रूप में या राज्य की नीति को किसी विषय में न होकर उस व्यक्ति का, जिसके मत पर आपत्ति की जाय, पृथक रूप से होना चाहिये।
२०१- समिति का सभापति
(१) प्रत्येक समिति का सभापति अध्यक्ष द्वारा समिति के सदस्यों में से नियुक्त किया जायेगा:
परन्तु यदि उपाध्यक्ष समिति के सदस्य हों तो वे समिति के पदेन सभापति होंगे ।
(२) यदि सभापति किसी कारण से कार्य करने में असमर्थ हों अथवा उनका पद रिक्त हो तो अध्यक्ष उनके स्थान में अन्य सभापति नियुक्त कर सकेंगे ।
(३) यदि समिति के सभापति समिति के किसी उपवेशन से अनुपस्थित हों तो समिति किसी अन्य सदस्य को उस बैठक के सभापति का कार्य करने के लिये निर्वाचित करेगी ।
२०२- गणपूर्ति
(१) किसी समिति का उपवेशन गठित करने के लिये गणपूर्ति समिति के कुल सदस्यों की संख्या से तृतीयांश से अन्यून होगी जब तक कि इन नियमों में अन्यथा उपबन्धित न हो ।
(२) समिति के उपवेशन के लिये निर्धारित किसी समय पर या उपवेशन के दौरान किसी समय पर यदि गणपूर्ति न हो तो सभापति उपवेशन को आधे घण्टे के लिए स्थगित कर देंगे और पुनः समवेत होने पर उपवेशन के लिये गणपूर्ति कुल सदस्यों की संख्या की पंचमांश से अन्यून होगी। यदि पुनः समवेत उपवेशन में उपस्थित सदस्यों की संख्या समिति की कुल सदस्य संख्या के पंचमांश से भी न्यून रहे तो उपवेशन को किसी भावी तिथि के लिये स्थगित कर दिया जायेगा।
(३) जब समिति उप नियम (२) के अन्तर्गत समिति के उपवेशन के लिये निर्धारित दो लगातार दिनांकों पर स्थगित हो चुकी हो तो सभापति इस तथ्य को सदन को प्रतिवेदित करेंगे:
परन्तु जब समिति अध्यक्ष द्वारा नियुक्त की गई हो तो सभापति स्थगन के तथ्य को अध्यक्ष को प्रतिवेदित करेंगे ।
(४) ऐसा प्रतिवेदन किये जाने पर, यथास्थिति, सदन या अध्यक्ष यह विनिश्चित करेंगे कि आगे क्या कार्यवाही की जाय।
२०३- समिति के उपवेशनों से अनुपस्थित सदस्यों को हटाया जाना तथा उनके स्थान की पूर्ति
(१) यदि कोई सदस्य किसी समिति के लगातार ३ उपवेशनों से सभापति की अनुज्ञा के बिना अनुपस्थित रहे तो ऐसे सदस्य को स्पष्टीकरण देने का अवसर देने के उपरान्त उस समिति से उनकी सदस्यता अध्यक्ष की आज्ञा से समाप्त की जा सकेंगी, और समिति में उनका स्थान अध्यक्ष की ऐसी आज्ञा के दिनांक से रिक्त घोषित किया जा सकेगा ।
(२) नियम २०० के उप नियम (२) में किसी बात के होते हुए भी उप नियम (१) के अन्तर्गत रिक्त स्थान की पूर्ति, अध्यक्ष द्वारा किसी अन्य सदस्य को नाम-निर्देशित करके की जा सकेगी ।
प्रथम-स्पष्टीकरण- इस नियम के अधीन उपवेशनों की गणना हेतु लखनऊ से बाहर आयोजित उपवेशनों को सम्मिलित नहीं किया जायेगा ।
द्वितीय-स्पष्टीकरण- यदि कोई सदस्य समिति के उपवेशन में भाग लेने हेतु लखनऊ आये हों, किन्तु उपवेशन में भाग न ले सके हों और लखनऊ आने की लिखित सूचना वह प्रमुख सचिव को उपवेशन की तिथि को ही उपलब्ध करा दें, तो इस नियम के प्रयोजन के लिये उन्हें उक्त तिथि को अनुपस्थित नहीं समझा जायेगा ।
२०४- सदस्य का त्याग- पत्र
कोई सदस्य समिति में अपने स्थान को स्वहस्तलिखित पत्र द्वारा जो अध्यक्ष को सम्बोधित होगा, त्याग सकेंगे ।
२०५- समिति की पदावधि
इनमें से प्रत्येक समिति के सदस्यों की पदावधि एक वित्तीय वर्ष होगी:
परन्तु इन नियमों के अन्तर्गत निर्वाचित या नाम-निर्देशित समितियां, जब तक विशेष रूप से अन्यथा निर्दिष्ट न किया जाय, उस समय तक पद धारण करेंगी जब तक कि नई समिति नियुक्त न हो जाय ।
२०६- समिति में मतदान
समिति के किसी उपवेशन में समस्त प्रश्नों का निर्धारण उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के मताधिक्य से होगा। किसी विषय में मत साम्य होने की दशा में सभापति का दूसरा या निर्णायक मत होगा।
२०७- उप- समितियां नियुक्त करने की शक्ति
(१) इन नियमों के अन्तर्गत इनमें से कोई भी समिति किन्हीं ऐसे विषयों की जो उसे निर्दिष्ट किये जायं, जांच करने के लिये एक या अधिक उप समितियां नियुक्त कर सकेगी जिनमें से प्रत्येक को अविभक्त समिति की शक्तियां प्राप्त होंगी और ऐसी उप-समितियों के प्रतिवेदन सम्पूर्ण समिति के प्रतिवेदन समझे जायेंगे, यदि वे सम्पूर्ण समिति के किसी उपवेशन में अनुमोदित हो जायं।
(२) उप-समिति के निर्देश-पत्र में अनुसंधान के लिये विषय या विषयों का स्पष्टतया उल्लेख होगा। उप-समिति के प्रतिवेदन पर सम्पूर्ण समिति द्वारा विचार किया जायेगा।
२०८- समिति के उपवेशन
समिति के उपवेशन ऐसे समय और दिन में होंगे जो समिति के सभापति द्वारा निर्धारित किया जाय: परन्तु यदि समिति का सभापति सुगमतया उपलब्ध न हो अथवा उनका पद रिक्त हो हो तो प्रमुख सचिव उपवेशन का दिन और समय निर्धारित कर सकेंगे।
२०९- समिति के उपवेशन उस समय हो सकेंगे जब सदन का उपवेशन हो रहा हो
समिति के उपवेशन उस समय हो सकेंगे जब सदन का उपवेशन हो रहा हो:
परन्तु सदन में विभाजन की मांग होने पर समिति के सभापति समिति की कायर्वाहियों को ऐसे समय तक के लिये निलम्बित कर सकेंगे जो उनकी राय में सदस्यों को विभाजन में मतदान करने का अवसर दे सकें।
२१०- उपवेशनों का स्थान
समिति के उपवेशन, विधान भवन, लखनऊ में किये जायेंगे और यदि यह आवश्यक हो जाय कि उपवेशन का स्थान विधान भवन के बाहर परिवर्तित किया जाय तो यह मामला अध्यक्ष को निर्दिष्ट किया जायगा जिनका विनिश्चय अन्तिम होगा।
२११- साक्ष्य लेने व पत्र-अभिलेख अथवा दस्तावेज मांगने की शक्ति
(१) किसी साक्षी को प्रमुख सचिव के हस्ताक्षरित आदेश द्वारा आहूत किया जा सकेगा और वह ऐसे दस्तावेजों को पेश करेगा जो समिति के उपयोग के लिये आवश्यक हों।
(२) यह समिति के स्वविवेक में होगा कि वह अपने समक्ष दिये गये किसी साक्ष्य को गुप्त या गोपनीय समझे।
(३) समिति के समक्ष रखा गया कोई दस्तावेज समिति के ज्ञान और अनुमोदन के बिना न तो वापस लिया जायेगा और न उसमें रूपान्तर किया जायेगा।
(४) समिति को शपथ पर साक्ष्य लेने और व्यक्तियों को उपस्थित कराने, पत्रों या अभिलेखों के उपस्थापन की अपेक्षा करने की शक्ति होगी, यदि उसके कतर्व्यों का पालन करने के लिए ऐसा करना आवश्यक समझा जायः
परन्तु शासन किसी दस्तावेज को पेश करने से इस आधार पर इन्कार कर सकेगा कि उसका प्रकट किया जाना राज्य के हित तथा सुरक्षा के प्रतिकूल होगा।
(५) समिति के समक्ष दिया गया समस्त साक्ष्य तब तक गुप्त एवं गोपनीय समझा जायेगा जब तक समिति का प्रतिवेदन सदन में उपस्थित न कर दिया जाय:
परन्तु यह समिति के स्वविवेक में होगा कि वह किसी साक्ष्य को गुप्त एवं गोपनीय समझे, जिस दशा में वह प्रतिवेदन का अंश नहीं बनेगा।
२१२- पक्ष या साक्षी समिति के समक्ष उपस्थित होने के लिये अधिवक्ता नियुक्त कर सकता है
समिति किसी पक्ष का प्रतिनिधित्व उसके द्वारा नियुक्त तथा समिति द्वारा अनुमोदित अधिवक्ता से कराये जाने की अनुमति दे सकेगी। इसी प्रकार कोई साक्षी समिति के समक्ष अपने द्वारा नियुक्त तथा समिति द्वारा अनुमोदित अधिवक्ता के साथ उपस्थित हो सकेगा।
२१३- साक्षियों की जांच की प्रक्रिया
समिति के सामने साक्षियों की जाँच निम्न प्रकार से की जायेगी :
(१) समिति किसी साक्षी को जाँच के लिये बुलाये जाने से पूर्व उस प्रक्रिया की रीति को तथा ऐसे प्रश्नों के स्वरूप को विनिश्चित करेगी जो साक्षी से पूछे जा सकें ।
(२) समिति के सभापति, इस नियम के उप नियम (१) में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार साक्षी से पहले ऐसा प्रश्न या ऐसे प्रश्न पूछ सकेंगे जो वह विषय या तत्संबंधी किसी विषय के संबंध में आवश्यक समझें।
(३) सभापति समिति के अन्य सदस्यों को एक-एक करके कोई अन्य प्रश्न पूछने के लिये कह सकेंगे।
(४) साक्षी को समिति के सामने कोई ऐसी अन्य संगत बात रखने को कहा जा सकेगा जो पहले न आ चुका हो और जिन्हें साक्षी समिति के सामने रखना आवश्यक समझता हो।
(५) जब किसी साक्षी को साक्ष्य देने के लिये आहूत किया जाय तो समिति की कार्यवाही का शब्दशः अभिलेख रखा जायेगा।(६) समिति के सामने दिया गया साक्ष्य समिति के सभी सदस्यों को उपलब्ध किया जा सकेगा।
२१४- समिति के प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर
समिति के प्रतिवेदन पर समिति की ओर से सभापति द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे:
परन्तु यदि सभापति अनुपस्थित हों या सुगमतया न मिल सकते हों तो समिति की ओर से प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर करने के लिये समिति कोई अन्य सदस्य चुनेगी।
२१५- उपस्थापन के पूर्व प्रतिवेदन का शासन को उपलब्ध किया जाना
समिति, यदि वह ठीक समझे, तो वह अपने प्रतिवेदन की प्रतिलिपि को या उसके पूरे किये गये किसी भाग को सदन में उपस्थापित करने से पूर्व शासन को उपलब्ध कर सकेगी। ऐसे प्रतिवेदन जब तक सदन में उपस्थापित नहीं कर दिये जायेंगे तब तक गोपनीय समझे जायेंगे।
२१६- प्रतिवेदन का उपस्थापन
(१) समिति का प्रतिवेदन समिति के सभापति द्वारा या उस व्यक्ति द्वारा जिसने प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर किये हों या समिति के किसी सदस्य द्वारा जो सभापति द्वारा इस प्रकार प्राधिकृत किये गये हों, या सभापति की अनुपस्थिति में या जब वह प्रतिवेदन उपस्थित करने में असमर्थ हों तो समिति द्वारा प्राधिकृत किसी सदस्य द्वारा उपस्थापित किया जायेगा और सदन के पटल पर रख दिया जायेगा ।
(२) प्रतिवेदन उपस्थित करने में सभापति या उसकी अनुपस्थिति में प्रतिवेदन उपस्थित करने वाले सदस्य यदि कोई अभ्युक्ति करे तो अपने आपको तथ्य के संक्षिप्त कथन तक सीमित रखेंगे या समिति द्वारा की गयी सिफारिशों की ओर सदन का ध्यान आकृष्ट करेंगे।
(३) संबंधित मंत्री या कोई मंत्री उसी दिन या किसी भावी दिनांक को जब तक के लिये वह विषय स्थगित किया गया है, सरकारी दृष्टिकोण और शासन द्वारा किये जाने वाले प्रस्तावित कार्य की व्याख्या करते हुए संक्षिप्त उत्तर दे सकेंगे।
(४) प्रतिवेदन उपस्थित किये जाने के उपरान्त किन्तु उपस्थिति की तिथि से १५ दिन के भीतर मांग किये जाने पर, अध्यक्ष यदि उचित समझें तो उस प्रतिवेदन पर विचार के लिये समय नियत करेंगे। सदन के समक्ष न कोई औपचारिक प्रस्ताव होगा और न मत लिये जायेंगे।
२१७- सदन में उपस्थापन से पूर्व प्रतिवेदन का प्रकाशन या परिचालन
अध्यक्ष, उनसे प्रार्थना किये जाने पर और जब सदन सत्र में न हो समिति के प्रतिवेदन के प्रकाशन या परिचालन का आदेश दे सकेंगे यद्यपि वह सदन में उपस्थापित न किया गया हो। ऐसी अवस्था में प्रतिवेदन आगामी सत्र में प्रथम सुविधाजनक अवसर पर उपस्थापित किया जायगा।
२१८- प्रक्रिया के संबंध में सुझाव देने की शक्ति
(१) समिति की अध्यक्ष के विचारार्थ उस समिति से संबंधित प्रक्रिया के विषयों पर संकल्प पारित करने की शक्ति होगी जो प्रक्रिया में ऐसे परिवर्तन कर सकेंगे जिन्हें वे आवश्यक समझें।
(२) इन समितियों में से कोई अध्यक्ष के अनुमोदन से इन नियमों में सन्निहित उपबन्धों को क्रियान्वित करने के लिये प्रक्रिया के विस्तृत नियम बना सकेंगी।
२१९- प्रक्रिया के विषय में या अन्य विषय में निर्देश देने की अध्यक्ष की शक्ति
(१) अध्यक्ष समय-समय पर समिति के सभापति को ऐसे निर्देश दे सकेंगे जिन्हें वे उसकी प्रक्रिया और कार्य के संगठन के विनियमन के लिये आवश्यक समझें।
(२) यदि प्रक्रिया के विषय में या अन्य किसी विषय में कोई संदेह उत्पन्न हो तो सभापति यदि ठीक समझें तो उस विषय को अध्यक्ष को निर्दिष्ट कर देंगे जिनका विनिश्चय अन्तिम होगा।
२२०-समिति का समाप्त कार्य
कोई समिति जो सदन के विघटन से पूर्व अपना कार्य समाप्त करने में असमर्थ हो तो वह सदन को प्रतिवेदन देगी कि समिति अपना कार्य समाप्त करने में समर्थ नहीं हो सकी है। कोई प्रारम्भिक प्रतिवेदन, ज्ञापन या टिप्पणी जो समिति ने तैयार की हो या कोई साक्ष्य जो समिति ने लिया हो वह नयी समिति को उपलब्ध कर दिया जायगा।
२२१-प्रमुख सचिव, समितियों का पदेन प्रमुख सचिव होगा
प्रमुख सचिव इन नियमों के अन्तर्गत नियुक्त समस्त समितियों के पदेन प्रमुख सचिव होंगे।
२२२-समितियों के सामान्य नियमों की प्रवृत्ति
किसी विशेष समिति के लिये जब तक अन्यथा विशेष रूप से उपबन्धित न हो इस अध्याय के सामान्य नियम के उपबन्ध सब समितियों पर प्रवृत्त होंगे।
वर्तमान में विधान सभा की समितियां
1- प्राक्कलन समिति
वर्तमान में विधान सभा की समितियां निम्नलिखित हैं-:
नियम २३१-समिति का गठन-
(१) ऐसे प्राक्कलनों की परीक्षा के लिये जो समिति को ठीक प्रतीत हों या उसे सदन द्वारा विशेष रूप से निर्दिष्ट किये जायें, एक प्राक्कलन समिति होगी।
(२) समिति में २५ से अनधिक सदस्य होंगे, जो सदन द्वारा प्रत्येक वर्ष उसके सदस्यों में से अनुपाती प्रतिनधित्व सिद्वान्त के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित किये जायेंगे:
परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किये जायेंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त जायें तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे ।
नियम २३२-समिति के कृत्य-(१) समिति के कृत्य ये होंगे:-
(क) प्राक्कलनों में अन्तर्निहित नीति से संगत क्या मितव्ययितायें, संगठन में सुधार, कार्यपटुता या प्रशासनिक सुधार किये जा सकते हैं; इस संबंध में प्रतिवेदित करना;
(ख) प्रशासन में कार्यपटुता और मितव्ययिता लाने के लिये वैकल्पिक नीतियों का सुझाव देना;
(ग) प्राक्कलनों मे अन्तर्निहित नीति की सीमा में रहते हुए धन ठीक ढंग से लगाया गया है या नहीं, इसकी जांच करना, तथा
(घ) प्राक्कलन किस रूप में सभा में उपस्थित किये जायेंगे, इसका सुझाव देना।
(२) समिति प्राक्कलनों की जांच वित्तीय वर्ष के भीतर समय-समय पर जारी रख सकेगी और जैसे-जैसे वह जांच करती जाय, सदन को प्रतिवेदित कर सकेगी। समिति के लिये यह अनिवार्य न होगा कि किसी एक वर्ष के समस्त प्राक्कलनों की जांच करे। इस बात के होते हुए भी कि समिति ने कोई प्रतिवेदन नहीं दिया है अनुदानों की मांगों पर अन्तिम रूप से
2-लोक लेखा समिति
नियम २२९-समिति का गठन-
(१) राज्य के विनियोग-लेखे और उन पर भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन, राज्य के वार्षिक वित्तीय विवरण या ऐसे अन्य लेखों या वित्तीय विषयों की जो उसके सामने रखे जायं या उसको निर्दिष्ट किये जायं या समिति जिनकी जांच करना आवश्यक समझे, जांच करने के लिये एक लोक लेखा समिति होगी।
(२) लोक लेखा समिति में २१ से अनधिक सदस्य होंगे जो प्रत्येक वर्ष सदन द्वारा उसके सदस्यों में से अनुपाती प्रतिनिधित्व सिद्धान्त के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित किये जायंगे :
परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किए जायेंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायं तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।
(३) सभापति समिति के सदस्यों में से निर्वाचित किया जायगा।
नियम २३०-समिति के कृत्य-
(१) राज्य के विनियोग लेखे और उन पर भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन का निरीक्षण करते समय लोक- लेखा समिति का यह कर्त्तव्य़ होगा कि वह अपना समाधान कर ले कि-
(क) जो धन लेखे में व्यय के रूप में प्रदर्शित किया गया है वह उस सेवा या प्रयोजन के लिये विधिवत उपलब्ध और लगाये जाने योग्य था जिसमें वह लगाया या भारित किया गया है,
(ख) व्यय प्राधिकार के अनुरूप है, जिसके वह अधीन है, और
(ग) प्रत्येक पुनर्विनियोग ऐसे नियमों के अनुसार किया गया है जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा विहित किये गये हों।
(२) लोक लेखा समिति का यह भी कर्त्तव्य़ होगा-
(क) राज्य व्यापार तथा निर्मांण योजनाओं की आय तथा व्यय दिखाने वाले लेखा विवरणों को तथा संतुलन-पत्रों और लाभ तथा हानि के लेखों के ऐसे विवरणों की जाँच करना जिन्हें तैयार करने की राज्यपाल ने अपेक्षा की हो, जो किसी विशेष राज्य व्यापार संस्था या परियोजना के लिये वित्तीय व्यवस्था विनियमित करने वाले संविहित नियमों के उपबन्धों के अन्तर्गत तैयार किये गये हों, और उन पर नियंत्रक महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन की जांच करना,
(ख) स्वायत्तशासी तथा अर्धस्वायत्तशासी निकायों की आय तथा व्यय दिखाने वाले लेखा विवरण की जांच करना, जिसकी लेखा परीक्षा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा राज्यपाल के निर्देशों के अन्तर्गत या किसी संविधि के अनुसार कही जा सके, और
(ग) उन मामलों में नियंत्रक महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन पर विचार करना जिनके संबंध में राज्यपाल ने उससे किन्हीं प्राप्तियों की लेखा परीक्षा करने की या भण्डार के और स्कन्धों के लेखों की परीक्षा करने की अपेक्षा की हो।
(३) ऐसे समस्त कृत्य जो राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों निगमों से संबंधित हों, लोक-लेखा समिति के अधिकार क्षेत्र व कृत्यों के बाहर होंगे।
3-प्रतिनिहित विधायन समिति
नियम २४४-समिति का गठन और कृत्य-अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित पन्द्रह से अनधिक सदस्यों की एक प्रतिनिहित विधायन समिति इस बात की छानबीन करने और सदन को प्रतिवेदन करने के लिये होगी कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त या अन्य वैध प्राधिकारी द्वारा प्रत्यायोजित विनियम, नियम, उप नियम उप विधि आदि बनाने की शक्ति का प्रयोग ऐसे प्रत्यावेदन के अन्तर्गत उचित रूप से किया जा रहा है:
परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किये जायेंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायें तो वे ऐसी नियुक्ति के दिनांक से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।
नियम २४५-समिति के कर्तव्य-समिति विशेष रूप से इस बात पर विचार करेगी-
(१) कि प्रतिनिहित विधान, संविधान अथवा उस अधिनियम के सामान्य उददेश्यों के अनुकूल है या नहीं जिसके अनुसरण में वह बनाया गया है;
(२) उसमें ऐसा विषय अन्तर्विष्ट है या नहीं जिसको समुचित ढंग से निबटाने के लिये समिति की राय में से विधान मण्डल का अधिनियम होना चाहिये ;
(३) उसमें कोई करारोपण अन्तर्विष्ट है या नहीं ;
(४) उसमें न्यायालय के क्षेत्राधिकार में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रुकावट होती है या नहीं ;
(५) वह उन उपबन्धों में से किसी को गतापेक्षक प्रभाव देता है या नहीं जिनके संबंध में संविधान या अधिनियम स्पष्ट रूप से ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं करता है ;
(६) उसमें राज्य की संचित निधि या लोक राजस्व में से व्यय अन्तर्विष्ट है या नहीं ;
(७) उसमें संविधान या उस अधिनियम द्वारा प्रदत्त शक्तियों का असामान्य अथवा अप्रत्याशित उपयोग किया गया प्रतीत होता है या नहीं, जिसके अनुसरण में वह बनाया गया है ;
(८) उसके प्रकाशन में या विधान मण्डल के समक्ष रखे जाने में अनुचित विलम्ब हुआ प्रतीत होता है या नहीं ;
(९) किसी कारण से उसके रूप या अभिप्राय के लिये किसी विशुद्धीकरण की आवश्यकता है या नही।
नियम २४६-समिति का प्रतिवेदन-
यदि समिति की राय हो कि ऐसा कोई विधान पूर्णतः या अंशतः रदद कर दिया जाना चाहिये या उसमें किसी प्रकार का संशोधन किया जाना चाहिये तो वह उक्त राय तथा उसका कारण सदन को प्रतिवेदित करेगी। यदि समिति की राय हो कि किसी प्रतिनिहित विधान से संबंधित कोई अन्य विषय सदन की सूचना में लाया जाना चाहिये तो वह उक्त राय तथा विषय सदन को प्रतिवेदित कर सकेगी।
4-याचिका समिति
नियम २३४-समिति का गठन-
अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित १५ से अनधिक सदस्यों की एक याचिका समिति होगी:-
परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किये जायेंगे और यदि कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायं तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।
नियम २३५- याचिका किसको सम्बोधित की जाय और कैसे समाप्त की जाय- प्रत्येक याचिका सदन को सम्बोधित की जायेगी और जिस विषय से उसका सम्बन्ध हो उसके बारे में याचिका देने वाले के निश्चित उद्देश्य का वर्णन करने वाली प्रार्थना के साथ समाप्त होगी ।
नियम २३६- याचिकाओं की व्याप्ति-अध्यक्ष की सम्मति से निम्न पर याचिकायें उपस्थित या प्रस्तुत की जा सकेंगी-
(१) ऐसा विधेयक जो नियम ११४ के अन्तर्गत प्रकाशित हो चुका हो या जो सदन में पुरःस्थापित हो चुका हो,
(२) सदन के सामने लम्बित कार्य से सम्बन्धित कोई विषय, और
(३) सामान्य लोक हित का कोई विषय परन्तु वह ऐसा न होः-
(क) जो भारत के किसी भाग में क्षेत्राधिकार रखने वाले किसी न्यायालय या किसी जांच न्यायालय या किसी संविहित न्यायाधिकरण या प्राधिकारी या किसी अर्ध-न्यायिक निकाय या आयोग के संज्ञान में हो,
(ख) जिसके लिए विधि के अन्तर्गत उपचार उपलब्ध है और विधि में नियम, विनियम, उप विधि सम्मिलित हैं जो संघ या राज्य शासन या किसी ऐसे प्राधिकारी द्वारा बनाया गया हो जिसे ऐसे नियम, विनियम आदि बनाने की शक्ति प्रत्यायोजित हो।
नियम २३७- याचिका का सामान्य प्रपत्र
(१) प्रत्येक याचिका सम्मानपूर्ण, शिष्ट और संयत भाषा में लिखी जायेगी।
(२) प्रत्येक याचिका हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि में होगी और उस पर याचिका देने वाले के हस्ताक्षर होंगे।
नियम २३८- याचिका के हस्ताक्षरकर्ताओं का प्रमाणीकरण- याचिका के प्रत्येक हस्ताक्षरकर्ता का पूरा नाम और पता उसमें दिया जायेगा और वह विधिवत प्रमाणीकृत होगा।
नियम २३९- किसी याचिका के साथ दस्तावेज नहीं लगायेजायेंगे-किसी याचिका के साथ कोई पत्र¸ शपथ-पत्र या अन्य दस्तावेज नहीं लगाये जायेंगे।
नियम २४०- प्रतिहस्ताक्षर-(१) प्रत्येक याचिका किसी सदस्य द्वारा उपस्थापित एवं प्रतिहस्ताक्षरित होगी।
(२) कोई सदस्य अपनी ओर से याचिका उपस्थापित नहीं करेंगे।
नियम २४१- उपस्थापन की सूचना-सदस्य प्रमुख सचिव को याचिका उपस्थित करने के अपने मन्तव्य की कम से कम दो दिन की पूर्व सूचना देंगे।
नियम २४२- याचिका का प्रपत्र-याचिका उपस्थित करने वाले सदस्य अपने को निम्न रूप के कथन तक ही सीमित रखेंगे:-
"मैं ...........................................के संबंध में याचिका देने वाले (लोगों) द्वारा हस्ताक्षरित याचिका उपस्थित करता हूं। "
और इस कथन पर किसी वाद-विवाद की अनुज्ञा नहीं होगी।
नियम २४३- याचिका के उपस्थापन के बाद प्रक्रिया-
(१) प्रत्येक याचिका इन नियमों के अधीन उपस्थित किये जाने के उपरान्त समिति को जांच के लिये निर्दिष्ट की जायेगी।
(२) जांच के उपरान्त समिति, यदि आवश्यक हो, तो यह निर्देश दे सकेगी कि याचिका सविस्तार अथवा संक्षिप्त रूप में परिचालित की जाय।
(३) परिचालन और साक्ष्य, यदि कोई हों, के उपरान्त समिति के सभापति या समिति के कोई सदस्य याचिका में की गयी विशिष्ट शिकायत और इस विशिष्ट मामले में प्रतिकारक उपायों या भविष्य में ऐसे मामले रोकने के लिये सुझाव सदन को प्रतिवेदित करेंगे।
5-विशेषाधिकार समिति
नियम २६३- समिति का गठन-अध्यक्ष एक विशेषाधिकार समिति नाम-निर्देशित करेंगे, जिसमें उपाध्यक्ष को सम्मिलित करके कुल १० सदस्य होंगे। उपाध्यक्ष इस समिति के सभापति होंगे।
नियम २६४- गणपूर्ति- समिति का उपवेशन गठित करने के लिये गणपूर्ति पांच होगी।
परन्तु साक्ष्य लेने के प्रयोजनार्थ उपवेशन गठित करने के लिये गणपूर्ति की आवश्यकता नहीं होगी।
नियम २६५- विशेषाधिकार समिति द्वारा प्रश्नों की जांच तथा उसकी प्रक्रिया-
(१) विशेषाधिकार समिति को निर्दिष्ट होने पर उस व्यक्ति को जिसके विरूद्व शिकायत की गयी है प्रमुख सचिव द्वारा शिकायत की एक प्रति इस अनुरोध के साथ भेज दी जायेगी कि एक निश्चित तिथि तक, यदि वह चाहें तो, शिकायत के संबंध में अपना लिखित वक्तव्य प्रमुख सचिव को भेज दें। लिखित वक्तव्य प्रस्तुत करने की तिथि व्यतीत होने के उपरान्त समिति यदि आवश्यक समझे, तो जांच के हेतु शिकायत करने वाले व्यक्ति तथा उस व्यक्ति को, जिसके विरूद्व शिकायत की गयी हो, एक निश्चित तिथि, समय और स्थान पर अपने समक्ष उपस्थित होने के लिये बुला सकेगी।
(२) ऐसा व्यक्ति, यदि वह चाहे तो अधिवक्ता द्वारा भी अपना पक्ष समिति के समक्ष उपस्थित करा सकेगा।
(३) यदि उपस्थित होने के लिये अदिष्ट-पक्ष नियत तिथि पर उपस्थित होने में असमर्थ है तो वह समिति को उन कारणों की सूचना देगा। समिति दिये गये कारणों को देखते हुए उस विषय पर विचार स्थगित कर सकेगी जिससे कि वह पक्ष उपस्थित हो सके । किन्तु यदि समिति यह समझे कि अनुपस्थिति के समुचित कारण नहीं हैं या पक्ष जान-बूझकर अनुपस्थित रहा है तो समिति उस पक्ष के विरूद्व उसकी अनुपस्थिति में ही विषय पर विचार करके अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर सकेगी तथा उसके विरूद्व आदेश भंग की सूचना सदन के समक्ष उचित कार्यार्थ रख सकेगी।
नियम २६६- समिति द्वारा प्रश्न की जांच-साक्ष्य के प्रकाश में और उस मामले की परिस्थितियों के अनुसार समिति उस समय प्रश्न की जांच करेगी और इस बात का निर्णय करेगी कि क्या किसी विशेषाधिकार की अवहेलना हुई है अथवा अवमान हुआ है तथा यह देखेगी कि किस प्रकार की अवहेलना हुई है और किन परिस्थितियों के कारण हुई है और ऐसी सिफारिशें करेगी जिन्हें वह ठीक समझें।
नियम २६७- समिति के सदस्यों की निर्योग्तायें-शिकायत करने वाले सदस्य अथवा वह सदस्य जिनके विरूद्व शिकायत की गयी हो, यदि समिति के सदस्य हों तब तक समिति में नहीं बैठेंगे जब तक कि उनके द्वारा अथवा उनके विरूद्व यथास्थिति की गयी शिकायत का विषय समिति के समक्ष विचाराधीन हो।
नियम २६८- विशेषाधिकार समिति का उपवेशन-
विशेषाधिकार समिति विशेषाधिकार अथवा अवमान के प्रश्न के निर्दिष्ट किये जाने के उपरान्त यथाशीध्र और उसके बाद समय-समय पर जब तक कि यथास्थिति सदन अथवा अध्यक्ष द्वारा नियत समय के भीतर प्रतिवेदन प्रस्तुत न कर दिया जाय, समवेत होगी:
परन्तु जब प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिये कोई समय नियत न किया गया हो तो प्रतिवेदन निर्देशन के दिनांक से एक मास के भीतर प्रस्तुत किया जायेगा:
किन्तु अध्यक्ष अथवा सदन, यथास्थिति, समिति द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत किये जाने की तिथि को समय-समय पर बढ़ा सकेंगे
नियम 269- समिति का प्रतिवेदन-समिति के प्रतिवेदन में यह दर्शाया जायगा कि क्या विशेषाधिकार की अवहेलना हुई है अथवा अवमान हुआ है और उसकी राय में क्या दण्ड दिया जाना चाहिए। यदि क्षमा मांगी गयी हो तो समिति यह भी सिफारिश कर सकेगी कि क्षमा याचना स्वीकार की जाये।
6-सरकारी आश्वासन संबंधी समिति
२३३- समिति का गठन और उसके कृत्य-मंत्रियों द्वारा समय-समय पर सदन के अन्दर दिये गये आश्वासनों, प्रतिज्ञाओं, वचनों आदि की छानबीन करने के लिये और निम्न बातों पर प्रतिवेदन करने के लिये सरकारी आश्वासनों सम्बन्धी एक समिति होगी, जिसमें अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित १५ से अनधिक सदस्य होंगे-
(क) ऐसे आश्वासनों, प्रतिज्ञाओं, वचनों आदि का कहां तक परिपालन किया गया है, तथा
(ख) जहां परिपालन किया गया है, तो ऐसा परिपालन उस प्रयोजन के लिए आवश्यक न्यूनतम समय के भीतर हुआ है, या नही :
परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किये जायेंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायं तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।
वर्ष 2017-2018 सरकारी आश्वासन संबंधी समिति के सदस्यों की सूची
7-प्रश्न एवं संदर्भ समिति
269-क-समिति का गठन-
(१) अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित १५ से अनधिक सदस्यों की एक ‘प्रश्न एवं सन्दर्भ समिति’ होगी और उपाध्यक्ष इस समिति के पदेन सभापति होंगे।
(२) कोई मंत्री उप नियम (१) में उल्लिखित समिति के सदस्य नहीं होंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायें तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।
(३) समिति का उपवेशन गठित करने के लिये न्यूनतम तीन सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक होगी।
269-ख-समिति के कृत्य-समिति का कार्य निम्नवत होगा:-
(क) यदि किसी प्रश्न का उत्तर शासन से समय से प्राप्त न हो अथवा प्राप्त उत्तर संतोषजनक न हो और अध्यक्ष ऐसा करना समीचीन समझें, तो वह उस मामले को प्रश्न एवं संदर्भ समिति को सन्दर्भित कर सकेंगे।
(ख) प्रश्नों के अतिरिक्त सदन से सम्बन्धित अन्य कोई मामला, जो नियमों के अन्तर्गत किसी अन्य समिति के क्षेत्राधिकार में न आता हो, अध्यक्ष द्वारा उक्त समिति को विचार हेतु सन्दर्भित किया जा सकेगा।
8-नियम समिति
नियम २४७- समिति का गठन-उत्तर प्रदेश विधान सभा की प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियमावली के संबंध में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को सम्मिलित करके १५ से अनधिक सदस्यों की एक समिति होगी, शेष सदस्य अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित किये जायेंगे।
नियम २४८- समिति के कृत्य-समिति के कृत्य यह होंगे कि वह सदन की प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन के विषय पर विचार करे और उसके नियमों में ऐसे संशोधनों तथा वृद्धियों की सिफारिश करे जो आवश्यक समझे जायें।
नियम २४९- नियमों में संशोधन की सूचना-कोई सदस्य इस नियमावली के नियमों में संशोधनों की सूचना दे सकेंगे, किन्तु ऐसी सूचना के साथ संशोधन के उददेश्य और कारणों का विवरण संलग्न होगा। अध्यक्ष ऐसी सूचना के प्राप्त होने पर यदि वह अनियमित न हो, उसे नियम समिति के विचारार्थ निर्दिष्ट करेंगे।
नियम २५०- समिति का सभापति-अध्यक्ष इस समिति के पदेन सभापति होंगे। यदि अध्यक्ष किसी कारण से समिति के सभापति के रूप में कार्य करने में असमर्थ हों तो उपाध्यक्ष उस उपवेशन के सभापति होंगे। यदि वे दोनों ही किसी कारण से पीठासीन होने में असमर्थ हों तो अध्यक्ष समिति के सदस्यों में से किसी को उस बैठक का सभापति नाम-निर्देशित करेंगे।
नियम २५१- नियमावली में संशोधन की प्रक्रिया-(क) समिति की सिफारिश सदन के पटल पर रखी जायेगी और इस प्रकार पटल पर रखे जाने के दिन से आरम्भ होकर १४ दिन की कालावधि के भीतर कोई सदस्य ऐसी सिफारिशों में किसी संशोधन, जिसमें समिति की सभी या किसी सिफारिश को समिति के पुनर्विचारार्थ निर्दिष्ट किये जाने का प्रस्ताव भी सम्मिलित है, की सूचना संशोधन करने के उद्देश्य और कारणों सहित दे सकेंगे।
(ख) यदि उप नियम (क) में उल्लिखित कालावधि के भीतर समिति की सिफारिशों में संशोधन की सूचना न दी जाय तो उस अवधि की समाप्ति पर समिति की सिफारिशें सदन द्वारा स्वीकृत समझी जायेंगी और नियमों में सम्मिलित कर ली जायेंगी।
(ग) यदि उप नियम (क) में विहित कालावधि के भीतर किसी संशोधन की सूचना प्राप्त हो तो अध्यक्ष ऐसे संशोधनों को जो ग्राह्य हों, समिति को निर्दिष्ट कर देंगे और समिति ऐसे संशोधनों पर विचार करके अपनी सिफारिशों में ऐसा परिवर्तन कर सकेगी जो वह उचित समझें।
(घ) उप नियम (ग) में उल्लिखित संशोधनों पर विचार करने के उपरान्त समिति का अंतिम प्रतिवेदन सदन के पटल पर १० दिन तक रखा जायगा और यदि इस कालावधि के भीतर समिति द्वारा पुनर्विचारोपरान्त किये गये निर्णयों में किसी संशोधन की सूचना कारण और उद्देश्य सहित प्राप्त हो तो अध्यक्ष ऐसे संशोधन को, जो ग्राह्य हो, सदन के विचारार्थ रखेंगे, अन्यथा समिति का प्रतिवेदन सदन, द्वारा स्वीकृत समझा जायगा और प्रतिवेदन में की गयी सिफारिशें नियमावली में सम्मिलित कर ली जायेंगी
9-कार्य मंत्रणा समिति
नियम २२३- समिति का गठन-(१) अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित एक समिति होगी जिसे कार्य-मंत्रणा समिति कहा जायगा। जिसमें अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को सम्मिलित करके १५ से अनधिक सदस्य होंगे। अध्यक्ष इस समिति के पदेन सभापति होंगे।
(२) यदि किसी कारण से अध्यक्ष समिति के उपवेशन में पीठासीन होने में असमर्थ हों तो उपाध्यक्ष उस बैठक के सभापति होंगे। यदि किसी कारणवश ये दोनों ही पीठासीन होने में असमर्थ हों तो अध्यक्ष समिति के सदस्यों में से उस उपवेशन के लिये सभापति नाम-निर्देशित करेंगे।
नियम २२४- समिति के कृत्य-
(१) समिति का यह कृत्य होगा कि वह ऐसे विधेयकों तथा अन्य सरकारी कार्य के प्रक्रम या प्रक्रमों पर चर्चा के लिये समय नियत करने के सम्वन्ध में सिफारिश करें, जिन्हें अध्यक्ष सदन-नेता के परामर्श से समिति को निर्दिष्ट करने के लिये निर्देश दें।
(२) समिति को प्रस्थापित समय-सूची में यह दर्शाने की शक्ति होगी कि विधेयक या अन्य सरकारी कार्य के विभिन्न प्रक्रम किस समय पूरे होंगे।
(३) समिति के लिये सदन के कार्य से सम्बन्धित ऐसे अन्य कृत्य भी निर्दिष्ट किये जा सकेंगे जिन्हें अध्यक्ष समय-समय पर विनिश्चित करें।
नियम २२५- समिति के प्रतिवेदन-किसी विधेयक या विधेयक समूह या अन्य कार्य के संबंध में समिति द्वारा सिफारिश की गयी समय-सारिंणी की सूचना साधारणतया सदस्यों को पत्र द्वारा, सदन को अध्यक्ष द्वारा प्रतिवेदन किये जाने से कम से कम एक दिन पूर्व दी जायेगी।
नियम २२६- समय का बंटवारा-(१) सदन को सूचित किये जाने के बाद यथासम्भव शीध्र अध्यक्ष द्वारा, नाम-निर्दिष्ट समिति के किसी भी सदस्य द्वारा यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा सकेगा: "कि यह सदन समिति द्वारा प्रस्थापित समय के बंटवारे को स्वीकार करता है"।
(२) जब ऐसा प्रस्ताव सदन द्वारा स्वीकृत हो जाय तो वह उसी प्रकार प्रभावी होगा जैसे कि वह सदन का आदेश हो:
परन्तु यह संशोधन प्रस्तुत किया जा सकेगा कि प्रतिवेदन या तो बिना परिसीमा के या किसी विशेष विषय के संबंध में समिति को पुर्निर्दिष्ट कर दिया जाय:
किन्तु प्रस्ताव पर चर्चा के लिये आधे घंटे से अधिक समय नियत नहीं किया जायेगा और कोई सदस्य ऐसे प्रस्ताव पर पांच मिनट से अधिक नहीं बोलेंगे ।
नियम २२७- निश्चित समय पर अवशिष्ट विषयों का निस्तारण-सदन के संकल्प के अनुसार निश्चित समय पर किसी विधेयक के किसी विशेष प्रक्रम अथवा अन्य कार्य को पूरा करने के लिये अध्यक्ष विधेयक के उस प्रक्रम अथवा अन्य कार्य से सम्बन्धित समस्त अवशिष्ट विषयों को निपटाने के लिये प्रत्येक आवश्यक प्रश्न तुरन्त रखेंगे ।
नियम २२८- समय के बंटबारे में परिवर्तन-सदन द्वारा विनिश्चित समय-सूची में कोई परिवर्तन नहीं किया जायगा जब तक कि सदन नेता द्वारा प्रार्थना न की जाय और उस दशा में वह मैखिक रूप से सदन को अभिसूचित करेंगे कि ऐसे परिवर्तन के लिये सामान्य सहमति है और अध्यक्ष सदन का अभिप्राय जानकर उस परिवर्तन को प्रवर्तित करेंगे।
10-आचार समिति
नियम 269-झ-समिति का गठन-उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्यों के सदन के भीतर तथा सदन के बाहर विधायक के रूप में किये गये आचरण की जांच हेतु अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित एक संसदीय "आचार समिति" होगी जिसमें अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को सम्मिलित करते हुए कुल ११ से अनधिक सदस्य होंगे। अध्यक्ष इस समिति के पदेन सभापति होंगे।
नियम 269-ञ-समिति के कृत्य -समिति के निम्नलिखित कृत्य होंगे:-
(१) समिति सदस्यों के नैतिक तथा सदाचारी व्यवहार पर दृष्टि रखेगी तथा सदस्यों के आचार सम्बन्धी और अन्य दुर्व्यवहार सम्बन्धी उसे निर्दिष्ट मामलों की जांच करेगी।
(२) समिति सदस्यों के कदाचार सम्बन्धी व्यवहार के परिप्रेक्ष्य में सदन की प्रक्रिया नियमावली में यथा आवश्यक संशोधन पर विचार करेगी।
(३) समिति विधान सभा के सदस्यों के सदन के अन्दर तथा सदन के बाहर के कृत्यों के बारे में प्राप्त शिकायतों पर गुणावगुण के आधार पर विचार एवं जांच करेगी।
(४) समिति आचार संहिता के उल्लंघन एवं अतिक्रमण के सभी मामलों में दोषी पाये गये सदस्य की, कम गम्भीर प्रकृति के अपराधों के लिये भर्त्सना, फटकार, निन्दा या सदन से निष्कासन और गम्भीर कदाचार के मामलों में सदन की सेवा से उन्हें एक विशिष्ट अवधि के लिये निलम्बित करने पर विचार कर अपनी संस्तुति कर सकेगी।
नियम 269-ट-समिति का प्रतिवेदन-समिति उपरोक्त सभी या किसी विषय के सम्बन्ध में अपना प्रतिवेदन सदन में प्रस्तुत कर सकेगी।
11- प्रदेश के निकायों स्थानीय निधि लेखा परीक्षा समिति
नियम 269-च-समिति का गठन-(१) राज्य के स्थानीय निकायों के लेखा परीक्षा प्रतिवेदनों की जांच हेतु इन संस्थाओं के वार्षिक वित्तीय विवरण या ऐसे अन्य लेखों या वित्तीय विषयों की जो उसके सामने रखे जायं या उसको निर्दिष्ट किये जायं या समिति जिनकी जांच करना आवश्यक समझे, जांच करने के लिये प्रदेश के स्थानीय निकायों के लेखा परीक्षा प्रतिवेदनों की जांच सम्बन्धी एक समिति होगी।
(२) स्थानीय निकायों के लेखा परीक्षा प्रतिवेदनों की जांच सम्बन्धी समिति में ११ से अनधिक सदस्य होंगे जो प्रत्येक वर्ष सदन द्वारा उसके सदस्यों में से अनुपाती प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित किये जायेंगे:
परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किये जायेंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायं तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।
नियम 269-छ-समिति के कृत्य -समिति के निम्नलिखित कृत्य होंगे:-
(१) परीक्षक, स्थानीय निधि लेखा, उत्तर प्रदेश के वार्षिक लेखा परीक्षा प्रतिवेदन के वार्षिक प्रतिवेदन विधान मण्डल के समक्ष विधिवत प्रस्तुत किये जा रहे हैं अथवा नहीं एवं तत्सम्बन्धी प्रतिवेदनों की जांच करना।
(२) शासकीय विभागों द्वारा स्थानीय निकायों को अनुदान एवं ऋण के रूप में जो धनराशियां दी जाती हैं और जिनकी लेखा परीक्षा परीक्षक, स्थानीय निधि लेखा, उत्तर प्रदेश द्वारा की जाती है, उनके सम्बन्ध में यह जांच करना कि प्राप्त किये गये सरकारी अनुदान एवं ऋण की राशियां सम्बन्धित संस्थाओं द्वारा उन्हीं कार्यों पर व्यय की गयी हैं जिनके लिये वे स्वीकृत की गयी थी तथा उनके उपयोग में कोई वित्तीय अनियमिततायें तो नहीं बरती गयी हैं।
नियम 269-ज-समिति के अधिकार क्षेत्र का विनिश्चय-यदि यह प्रश्न उत्पन्न हो कि कोई विषय इस समिति के क्षेत्र में आता है अथवा नहीं, तो यह मामला अध्यक्ष, विधान सभा को निर्दिष्ट किया जायेगा और उनका विनिश्चय अन्तिम होगा।
वर्ष 2017-2018 प्रदेश के निकायों स्थानीय निधि लेखा परीक्षा समिति के सदस्यों की सूची
12-विधान पुस्तकालय समिति अध्याय-13 (उत्तर प्रदेश विधान सभा अध्यक्ष के निदेश) (क) विधान पुस्तकालय समिति समिति का गठन -
(138)-(1) विधान पुस्तकालय की एक पुस्तकालय समिति होगी जिसके निम्नांकित सदस्य होंगे :-- (क) उपाध्यक्ष तथा विधान सभा के अन्य उन्नीस सदस्य, और (ख) विधान परिषद् के पांच सदस्य,
(2) समिति की नियुक्ति माननीय अध्यक्ष करेंगे और इसका कार्यकाल एक वर्ष से अधिक न होगा : किन्तु विधान परिषद् के सदस्यों के बारे में उनकी नियुक्ति करने से पूर्व माननीय अध्यक्ष विधान परिषद् के माननीय सभापति से परामर्श कर लेंगे ।
(3) उपाध्यक्ष समिति के पदेन सभापति होंगे।
(4) समिति में किसी सदस्य के स्थान रिक्त हो जाने पर माननीय अध्यक्ष उस स्थान पर किसी अन्य सदस्य को मनोनीत करेंगे और यदि कोई स्थान सदस्य, विधान परिषद् द्वारा रिक्त किया गया हो, तो उसकी पूर्ति माननीय अध्यक्ष द्वारा विधान परिषद् के माननीय सभापति से परामर्श करने के उपरान्त की जायेगी।
(5) समिति के कृत्य निम्नांकित होंगे:- (क) पुस्तकालय के संबंध में माननीय अध्यक्ष द्वारा समय-समय पर निर्दिष्ट विषयों पर विचार करना और परामर्श देना, (ख) पुस्तकालय की उन्नति के संबंध में विचार करना और सुझाव देना, तथा (ग) पुस्तकालय द्वारा प्रदत्त सेवाओं के पूर्ण उपयोग में विधान मण्डल के सदस्यों की सहायता करना।
(6) कोई सदस्य समिति में अपने स्थान को, लिखित त्याग-पत्र द्वारा जो समिति के सभापति को सम्बोधित होगा, त्याग सकेगा।
(7) यदि कोई सदस्य समिति की लगातार दो या अधिक बैठकों से सभापति की अनुज्ञा के बिना अनुपस्थित रहेगा तो माननीय अध्यक्ष उसे समिति की सदस्यता से हटा सकेंगे: किन्तु यदि वह सदस्य विधान परिषद् का सदस्य है, तो विधान परिषद् के माननीय सभापति को उसकी रिपोर्ट प्रेषित की जा सकेगी और उनके परामर्श से उनको हटाया जा सकेगा।
(8) विधान सभा अथवा विधान परिषद् का उपवेशन जब हो रहा हो उस समय भी समिति की बैठकें हो सकेंगी, परन्तु किसी भी सदन में विभाजन की मांग होने पर समिति के सभापति समिति की कार्यवाही को ऐसे समय तक के लिये निलम्बित करेंगे जो उनकी राय में सदस्यों को विभाजन में मतदान करने का अवसर दे सकेंगे।
(9) अन्य बातों में नियमावली के अध्याय 16 में वर्णित विधान मण्डलीय समितियों पर लागू सामान्य नियम ऐसे अनुकूलनों, संशोधनों, परिवर्धनों अथवा लोपनों के साथ, जिन्हें माननीय अध्यक्ष आवश्यक अथवा सुविधाजनक समझें, इस समिति पर भी लागू होंगे।
13- संसदीय शोध संदर्भ एवं अद्ध्यन समिति
269-(ण) समिति का गठन-सदन के समक्ष उठने वाले विभिन्न विषयों पर अध्ययन करने के लिए अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को सम्मिलित करके 15 से अनधिक सदस्यों की एक समिति होगी जिसके शेष सदस्य अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित किये जायेंगे।
269-(त) समिति के सभापति-अध्यक्ष इस समिति के पदेन सभापति होंगे। यदि अध्यक्ष किसी कारण से समिति के सभापति के रूप में कार्य करने में असमर्थ हों तो उपाध्यक्ष उस उपवेशन के सभापति होंगे। यदि वे दोनों ही किसी कारण से पीठासीन होने में असमर्थ हों तो अध्यक्ष समिति के सदस्यों में से किसी को उस बैठक का सभापति नाम-निर्देशित करेंगे।
269-(थ) समिति के कृत्य-समिति सदन के समक्ष समय-समय पर उठने वाले विभिन्न संसदीय विषयों का अध्ययन करेगी और विचारोपरान्त सदन में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगी।
वर्ष 2017-2018 संसदीय शोध संदर्भ एवं अध्ययन समिति के सदस्यों की सूची
14- पंचायती राज समिति
269-(द)समिति का गठन-(1) ग्राम पंचायतों तथा जिला पंचायतों एवं क्षेत्र पंचायतों के सम्बन्ध में ‘भारत सरकार के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की वार्षिक तकनीकी रिपोर्ट’ और ‘मुख्य लेखा-परीक्षा अधिकारी, सहकारी समितियां एवं पंचायतें, उत्तर प्रदेश सरकार की वार्षिक रिपोर्ट’, जो राज्य सरकार द्वारा राज्य विधान मण्डल के समक्ष रखी जायें या उसको निर्दिष्ट की जायें या समिति जिनकी जांच करना आवश्यक समझे, जांच करने के लिए एक पंचायती राज समिति होगी।
(2) पंचायती राज समिति में विधान सभा के आठ से अनधिक सदस्य होंगे जो प्रत्येक वर्ष सदन द्वारा उसके सदस्यों में से अनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित किये जायेंगे तथा दो सहयुक्त सदस्य विधान परिषद् के होंगे:
परंतु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किये जायेंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्ति किये जायें तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।
269-(ध) समिति के कृत्य-समिति के निम्नांकित कृत्य होंगे:-
(1) ग्राम पंचायतों तथा जिला पंचायतों एवं क्षेत्र पंचायतों के संबंध में ‘भारत सरकार के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की वार्षिक तकनीकी रिपोर्ट’ और ‘मुख्य लेखा-परीक्षा अधिकारी, सहकारी समितियां एवं पंचायतें, उत्तर प्रदेश सरकार की वार्षिक रिपोर्ट’ विधान मण्डल के समक्ष विधिवत् प्रस्तुत किये जा रहे हैं अथवा नहीं एवं तत्सम्बन्धी प्रतिवेदनों की जांच करना।
(2) शासकीय विभागों द्वारा ग्राम पंचायतों तथा जिला पंचायतों एवं क्षेत्र पंचायतों को अनुदान एवं ऋण के रूप में जो धनराशियां दी जाती हैं उनके संबंध में भारत सरकार के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की वार्षिक तकनीकी रिपोर्ट’ और ‘मुख्य लेखा-परीक्षा अधिकारी, सहकारी समितियां एवं पंचायतें, उत्तर प्रदेश सरकार की वार्षिक रिपोर्ट’ के संबंध में यह जांच करना कि प्राप्त किये गये सरकारी अनुदान एवं ऋण की राशियां सम्बन्धित संस्थाओं द्वारा उन्हीं कार्यों पर व्यय की गई हैं जिनके लिये वे स्वीकृत की गई थी तथा उनके उपयोग में कोई वित्तीय अनियमिततायें तो नहीं बरती गई हैं।
269(न)-समिति के अधिकार क्षेत्र का विनिश्चय:यदि यह प्रश्न उत्पन्न हो कि कोई विषय इस समिति के क्षेत्र में आता है अथवा नहीं, तो यह मामला अध्यक्ष, विधान सभा को निर्दिष्ट किया जायेगा और उनका विनिश्चय अन्तिम होगा।
15- संसदीय अनुश्रवण समिति
269-प-समिति का गठन :-
उत्तर प्रदेश विधान सभा की एक ‘’संसदीय अनुश्रवण समिति’’ होगी जिसमें माननीय सभापति सहित कम से कम 19 सदस्य (सदस्य, विधान सभा) होंगे तथा इस समिति के पदेन सभापति माननीय अध्यक्ष, विधान सभा होंगे। यदि अध्यक्ष किसी कारण से समिति के सभापति के रूप में कार्य करने में असमर्थ हों तो उपाध्यक्ष उस उपवेशन के सभापति होंगे। यदि वे दोनों ही किसी कारण से पीठासीन होने में असमर्थ हो तो अध्यक्ष समिति के सदस्यों में से किसी सदस्य को उस बैठक का सभापति नाम निर्देशित करेंगे।
269-फ- समिति के कृत्य :-
(1) उत्तर प्रदेश विधान सभा के प्रक्रिया एवं संचालन नियमावली, 1958 के नियम-301, नियम-51 एवं माननीय अध्यक्ष के अनुमोदन से उक्त नियमावली के अंतर्गत सदृश सूचनाएं जो सदन में प्रस्तुत की गयी हो, के विषय में यदि सदस्य शासन द्वारा सदन में प्रस्तुत किए गए उत्तर से संतुष्ट न हो अथवा उत्तर तथ्यों पर आधारित न हों या शासन द्वारा उत्तर प्रस्तुत ही न किया गया हो ऐसे प्रश्न ‘’संसदीय अनुश्रवण समिति’’ को सन्दर्भित किए जा सकेंगे।
(2) शासकीय विभागों द्वारा ग्राम पंचायतों तथा जिला माननीय अध्यक्ष की अनुमति से माननीय सदस्यों के प्रोटोकॉल के उल्लंघन से संबंधित प्रकरण भी सीमित के विचारार्थ लिए जा सकेंगे।
(3) उत्तर प्रदेश विधान सभा के निदेश के खंड-167 इस नियमावली के अंग माने जाएंगे।
(4) माननीय सदस्यों द्वारा संसदीय अनुश्रवण समिति को संदर्भित किये गये प्रकरणों पर विधान सभा सचिवालय की ओर से संबंधित सचिव/प्रमुख सचिव/अपर मुख्य सचिव को व्याख्यात्मक टिप्पणी हेतु प्रकरण प्रेषित किए जाएंगे। शासन से संबंधित विभाग को व्याख्यात्मक टिप्पणीएक सप्ताह के अंदर समिति के विचारार्थ प्रस्तुत करनी होगी। समिति सम्बन्धित सचिव/प्रमुख सचिव/अपर मुख्य सचिव का साक्ष्य लिये जाने हेतु शक्ति धारित करेगी।
(5) व्याख्यात्मक टिप्पणी के आलोक में समिति विचार विमर्श के उपरांत अपनी संस्तुति/प्रतिवेदन सदन में प्रस्तुत करेगी।
269-ब-समिति का प्रतिवेदन :-
समिति विधान सभा के अध्यक्ष द्वारा समय-समय पर उसे निर्दिष्ट किये गये विषयों के सम्बन्ध में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगी।
नियम-269 में संशोधन :-
उत्तर प्रदेश विधान सभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली में नियम-269 में (घ) ‘’संसदीय अनुश्रवण समिति’’ का जोड़ा जाना। परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किये जायेंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायें तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।
वर्तमान मे उत्तर प्रदेश विधान सभा में निम्नलिखित संयुक्त समिति हैं
1- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा विमुक्त जातियों सम्बन्धी संयुक्त समिति
नियम 269-ग-समिति का गठन-राज्य विधान मण्डल के दोनों सदनों की एक संयुक्त समिति गठित की जायेगी, जो "अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा विमुक्त जातियों सम्बन्धी संयुक्त समिति" कहलायेगी और उसमें २५ सदस्य होंगे जिनमें से २१ सदस्य, विधान सभा के तथा ४ सदस्य विधान परिषद् के होंगे। यह सदस्य प्रत्येक सदन के सदस्यों में से एकल संक्रमणीय मत (सिंगिल ट्रान्सफरेबिल वोट) द्वारा अनुपाती प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त के अनुसार निर्वाचित होंगे।
’’परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किये जायेंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायं तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।’’
नियम 269-घ-समिति के कृत्य-उक्त समिति के निम्नलिखित कृत्य होंगे:-
(१) संविधान, विधियों तथा नियमावलियों एवं विभिन्न शासनादेशों द्वारा उक्त जातियों के हेतु प्रदत्त सेवाओं में आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं के कार्यान्वयन की प्रगति की जांच करना।
(२) इन वर्गों की दशा को कम से कम समय में सुधारने के लिये तथा शासन द्वारा निर्धारित नीतियों के उद्देश्यों को पूर्ण कराने हेतु सुझाव देना एवं उपाय बताना।
नियम 269-ङ-समिति का प्रतिवेदन-समिति विधान मण्डल के दोनों सदनों को समय-समय पर पूर्वोक्त सभी या किसी विषय के सम्बन्ध में प्रतिवेदन देगी।
2- सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम संयुक्त समिति
नियम २३२-क-समिति के कृत्य-राज्य के सभी सार्वजनिक उपक्रमों तथा निगमों के कार्य-संचालन की जांच करने के उत्तर प्रदेश विधान मण्डल की सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम संयुक्त समिति होगी।
इस समिति के निम्नांकित कृत्य होंगे:-
(क) उपरोक्त सार्वजनिक उपक्रमों तथा निगमों की आय तथा व्यय दिखाने वाले लेखा विवरणों की तथा संतुलन-पत्रों और लाभ एवं हानि के लेखों के ऐसे विवरणों की जांच करना जिन्हें तैयार करने की राज्यपाल ने अपेक्षा की हो या जो किसी विशेष सार्वजनिक उपक्रमों या निगम के लिये वित्तीय व्यवस्था विनियमित करने वाले संविहित नियमों के उपबन्धों के अन्तर्गत तैयार किये गये हों और उन पर महालेखाकार, उत्तर प्रदेश द्वारा दिये गये प्रतिवेदनों की, यदि कोई हों, जांच करना।
(ख) उपरोक्त उपक्रमों एवं निगमों की स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए उनकी दक्षता की जांच ऐसे दृष्टिकोण से करना कि क्या उनका प्रबन्ध ठोस व्यावसायिक सिद्धान्तों तथा व्यापारिक कार्य प्रणाली के अनुसार किया जा रहा है ।
(ग) उपरोक्त उपक्रमों एवं निगमों के सम्बन्ध में ऐसे अन्य कर्त्तव्य़ जो अन्यथा लोक लेखा समिति और प्राक्कलन समिति के कार्य क्षेत्र में आते हों और जिन्हें विधान सभा के अध्यक्ष इस समिति को समय-समय पर निर्दिष्ट करें: किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि समिति निम्नलिखित मामलों की जांच नहीं करेगी:
(१) शासन की नीति के प्रमुख मामले जो सार्वजनिक उपक्रमों के व्यावसायिक कार्यों से भिन्न हों,
(२) दिन-प्रतिदिन के प्रशासनिक मामले,
(३) ऐसे मामले जो सम्बन्धित सार्वजनिक उपक्रम/ निगम की स्थापना करने वाले अधिनियम द्वारा किसी निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार निस्तारित किये जाने हों।
नियम २३२-ख-समिति का गठन-समिति में सभापति को शामिल करते हुए ३५ सदस्य होंगे, जिनमें से २५ सदस्य विधान सभा के और १० सदस्य विधान परिषद् के होंगे, जो प्रत्येक सदन के सदस्यों में से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्वान्त के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे:
परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नहीं होंगे, और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायें तो ऐसी नियुक्ति की तिथि से उनकी समिति की सदस्यता समाप्त हो जायेगी।
नियम २३२-ग-समिति के सभापति की नियुक्ति-समिति के सभापति की नियुक्ति विधान सभा के अध्यक्ष द्वारा की जायगी। समिति की बैठक करने के लिये गणपूरक संख्या समिति के सदस्यों की कुल संख्या की एक तिहाई होगी।
नियम २३२-घ-समिति का प्रतिवेदन-समिति विधान मण्डल के दोनों सदनों को समय-समय पर पूर्वोक्त सभी या किसी विषय के सम्बन्ध में प्रतिवेदन देगी ।
नियम २३२-ङ-सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम संयुक्त समिति के अधिकार क्षेत्र का विनिश्चय-: यदि यह प्रश्न उत्पन्न हो कि कोई विषय सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम संयुक्त समिति के अधिकार क्षेत्र में आता है अथवा नहीं, तो यह मामला अध्यक्ष, विधान सभा को निर्दिष्ट किया जायेगा और उनका विनिश्चय अन्तिम होगा।
वर्तमान सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम संयुक्त समिति की आन्तरिक कार्य-प्रणाली के नियम
वर्तमान सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम संयुक्त समिति के सदस्यों की सूची(2017-2018)
3- आवास संबंधी संयुक्त समिति
अध्याय-13 (उत्तर प्रदेश विधान सभा अध्यक्ष के निदेश)
(छ) आवास संबंधी संयुक्त समिति
96-(1) उत्तर प्रदेश विधान परिषद् द्वारा दिनांक 29 अगस्त, 1985 को तथा उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा दिनांक 5 सितम्बर, 1985 को पारित किये गये संकल्प के अनुसार उत्तर प्रदेश विधान मण्डल के सदस्यों तथा विधान मण्डल सचिवालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के आवास आदि के विषयों पर विचार-विमर्श हेतु “आवास सम्बन्धी संयुक्त समिति’’ होगी।
(2) उक्त समिति में 15 सदस्य होंगे जिसमें से 9 सदस्य विधान सभा के और 6 सदस्य विधान परिषद् के होंगे । समिति अध्यक्ष, विधान सभा द्वारा नाम-निर्देशित होगी किन्तु समिति में विधान परिषद् के सदस्य सभापति, विधान परिषद् द्वारा नामित किये जायेंगे।
(3) समिति के सभापति, चक्रानुक्रम में एक वर्ष उपाध्यक्ष, विधान सभा तथा दूसरे वर्ष उप सभापति, विधान परिषद् होंगे किन्तु पीठासीन अधिकारी का उक्त संगत पद रिक्त होने की दशा में समिति के सभापति, यथास्थिति, अध्यक्ष, विधान सभा अथवा सभापति, विधान परिषद् द्वारा नामित किये जायेंगे।
(4) उक्त समिति के निम्नलिखित कृत्य होंगे :-
(क) विधान मण्डल के सदस्यों एवं कर्मचारियो के लिए शासकीय आवास प्रबन्ध सम्बन्धी सब विषयों पर कार्यवाही करना, तथा
(ख) विधायकों के निवास स्थानों पर अथवा अन्य स्थानों पर जहां विधान मण्डल की समितियों के उपवेशन किये जायें, अथवा आवास सम्बन्धी अन्य सुविधायें, जो सदस्यों को प्राप्त हों, उनकी देखभाल करना,
(ग) इस समिति का कार्य परामर्श देना होगा । समिति की सिफारिशें अध्यक्ष, विधान सभा को प्रस्तुत की जायेगी। अध्यक्ष उन्हें शासन के सम्बन्धित विभाग को अपने विचार प्रकट करने के लिए भेजेंगे। शासन के सम्बन्धित विभाग के विचार प्राप्त हो जाने पर अध्यक्ष सिफारिशों पर सभापति, विधान परिषद् से परामर्श करके ऐसे परिवर्तनों के साथ जिन्हें वे उचित समझें अन्तिम आदेश देंगे :
परन्तु अध्यक्ष यदि चाहें तो सिफारिशों को उन अभ्युक्तियों के साथ जिन्हें वे आवश्यक समझें पुनर्विचार के लिए समिति को वापस भेज सकेंगें:
परन्तु यह भी कि यदि किसी सिफारिश में अतिरिक्त व्यय अन्तर्ग्रस्त हो तो अध्यक्ष, सम्बन्धित मंत्री से भी परामर्श करने के बाद उस पर अन्तिम आदेश देंगे।
4- महिला एवं बाल विकास सम्बन्धी संयुक्त समिति
नियम २६९-(ठ) समिति का गठन-राज्य विधान मण्डल के दोनों सदनों की एक संयुक्त समिति गठित की जायेगी, जो ’’महिला एवं बाल विकास सम्बन्धी संयुक्त समिति’’ कहलायेगी। समिति में सभापति को सम्मिलित करते हुए 19 सदस्य होंगे जिनमें 15 सदस्य विधान सभा के तथा 4 सदस्य विधान परिषद् के होंगे। विधान सभा के 15 सदस्य अध्यक्ष, विधान सभा द्वारा तथा विधान परिषद् के 4 सदस्य सभापति, विधान परिषद् द्वारा नामनिर्देशित किये जायेंगे:
परन्तु कोई मंत्री समिति के सदस्य नियुक्त नहीं किये जायेंगे और यदि समिति के कोई सदस्य मंत्री नियुक्त किये जायं तो वे ऐसी नियुक्ति की तिथि से समिति के सदस्य नहीं रहेंगे।
नियम २६९-(ड) समिति के कृत्य-
(1) महिला एवं बाल विकास के सिद्घान्त एवं योजना के कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकार द्वारा बनाये गये अधिनियम, नियम, परिनियम, परिपत्र एवं आदेश की समीक्षा करना,
(2) महिलाओं एवं बच्चों के शैक्षिक एवं आर्थिक विकास हेतु अपने प्रतिवेदन में संस्तुतियां करना,
(3) महिलाओं एवं बच्चों की विधिक सहायता की समीक्षा करना,
(4) समिति राज्य में स्थापित संस्थानों के कृत्यों एवं अभिलेखों की जांच कर सकेगी जो राज्य सरकार से महिलाओं एवं बच्चों के विकास के लिए किसी भी रूप में अनुदान प्राप्त करती हो,
(5) समिति महिला एवं बाल विकास से सम्बन्धित ऐसे अन्य विषयों की भी जांच कर सकेगी जो समय-समय पर उसे अध्यक्ष द्वारा निर्दिष्ट किये जायें,
(6) यदि यह प्रश्न उत्पन्न हो कि कोई विषय इस समिति के क्षेत्र में आता है अथवा नहीं, तो यह मामला अध्यक्ष, विधान सभा को निर्दिष्ट किया जायेगा और उनका विनिश्चय अन्तिम होगा।
नियम २६९-(ढ) समिति का प्रतिवेदन-समिति विधान मण्डल के दोनों सदनों को उपर्युक्त विषयों या अध्यक्ष द्वारा समय-समय पर उसे निर्दिष्ट किये गये विषयों के सम्बन्ध में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगी।
महिला एवं बाल विकास सम्बन्धी संयुक्त समिति की आन्तरिक कार्य-प्रणाली के नियम
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